सोमवार, जून 20, 2022

प्रेम जनमेजय को पंडित माधव राव स्प्रे छत्तीसगढ़ मित्र साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान!



 

साहित्य व विचार पर केंद्रित मासिक पत्रिका'छत्तीसगढ़-मित्र' एवं हिंदुस्तानी भाषाओं के संरक्षण व संवर्धन को समर्पित स्वयंसेवी संस्था'हिंदुस्तानी भाषा अकादमी' के संयुक्त प्रयास से,दिल्ली के हिंदी भवन में,कल दिनाँक 19-06-2022 को,एक कार्यक्रम किया गया।यह कार्यक्रम-'छत्तीसगढ़ मित्र' के संस्थापक संपादक पंडित माधव राव स्प्रे की 150वीं जयंती के समापन पर किया गया।
इस अवसर पर,साहित्य की व्यंग्य विधा को समर्पित त्रैमासिक पत्रिका'व्यंग्य यात्रा ' को'पंडित माधवराज स्प्रे छत्तीसगढ़ मित्र साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान'से नवाजा गया। 'व्यंग्य यात्रा'की ओर से,यह सम्मान स्वीकार करते हुए पत्रिका के संपादक-प्रेम-जनमेजय ने कहा कि-यह इस पत्रिका के सहयात्रियों और शुभचिंतकों की शुभकामनाओं का फल है। इस समारोह में-ममता कालिया, प्रदीप ठाकुर त्रिलोक दीप ,सुशील त्रिवेदी, अशोक माहेश्वरी, अभिषेक अवस्थी गिरीश पंकज, सुधीर शर्मा, सुधाकर पाठक, तृषा शर्मा जैसे वरिष्ठ साहित्यकार, कवि,लेखक, पत्रकार,भाषाविद व साहित्य प्रेमी मौजूद थे।
   प्रेम जनमेजय ने,उपस्थित सभी साहित्यिक मित्रों का आभार प्रकट करते हुए,यह भी कहा कि  यह सम्मान उनका नहीं, व्यंग्य यात्रा के सभी शुभचिंतकों का है। यह सम्मान एक भिक्षुक का सम्मान है।इस अवसर पर,'हिंदी भाषा पर केंदित,उनकी पुस्तक  'हिंदी का राष्ट्र और राष्ट्र की हिंदी' का भी लोकार्पण किया गया।
इतिहास, संस्कृति, भाषा, साहित्य, शिक्षा और समाज के संदर्भ में 'भारतीयता और विश्वबोध' को लेकर,एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का भी आयोजन इस अवसर पर  किया गया था,जिसमें,अनेक विद्वानों ने अपने विचार रखे।
मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित-वरिष्ठ साहित्यकार ममता कालिया ने अपने उद्बोधन में कहा कि-भारतीय संस्कृति,भाषा, राष्ट्रीय चेतना को जगाने में,जिन महान विभूतियों का सबसे ज्यादा योगदान रहा उनमें, महात्मा गांधी, महावीर प्रसार द्विवेदी और पंडित माधवराव राव स्प्रे का नाम मुख्य रूप से लिया जा सकता है। माधवराव जी ने वर्ष-1900 में'छत्तीसगढ़ मित्र' की शुरुआत की,जब न तो देश स्वतंत्र था और न ही प्रकाशन की आज जैसी सुविधाएं थीं।पत्रिका के संपादक होने के नाते,उसके लिए सामग्री जुटाना, कितना कठिन रहा होगा।
वरिष्ठ पत्रकार सुदीप ठाकुर ने कहा कि स्प्रे जी का जीवन केवल 55 वर्ष का था,लेकिन अपने इस छोटे से जीवनकाल में भी पत्रकारिता व भाषा के क्षेत्र में  उन्होंने अतुलनीय योगदान दिया।डॉ मैनेजर पांडेय ने उनके उनके लेखन पर अद्भुत कार्य किया है।
डॉ सुशील त्रिवेदी का कहना था कि पंडित माधवराव स्प्रे जी ने धर्म,अध्यात्म और विचारधारा से आगे जाकर,भारत को विश्वबोध करवाया। गिरीश पंकज ने कहा की भारतीयता में,वसुधैव कुटुम्बकम की भावना पहले से ही समाहित है।आज कुछ संकीर्ण मानसिकता के लोग,भारतीयता की इस भावना को आहत कर रहे हैं।इनसे हमें सावधान रहने की आवश्यकता है।
'हिंदुस्तानी भाषा अकादमी' के अध्यक्ष सुधाकर पांडेय ने कहा कि कोई भी भाषा केवल विचारों का आदान प्रदान करने का माध्यम मात्र नहीं होती,वह उस समुदाय की सभ्यता व संस्कृति की भी वाहक होती है।आज भारतीय भाषायें लुप्त होती जा रहीं हैं।यदि हमारी भाषायें बचेंगी, तो हमारी संस्कृति भी बचेगी।आज भारतीयता को यदि बचाना है,तो हमें हिंदुस्तान की सभी भाषाओं का न केवल संरक्षण, बल्कि संवर्धन भी करना पड़ेगा। हमारी अकादमी पिछले अनेक वर्षों से,अपने सीमित संसाधनों के बावजूद, यह कार्य लगातार कर रही है।
इस अवसर पर  कई अन्य पुस्तकों का लोकार्पण व  एक कवि-गोष्ठी का भी आयोजन किया गया,जिसमें दिल्ली,छत्तीसगढ़ व अन्य राज्यों से पधारे,अनेक कवि-कवयित्रियों ने कविता पाठ किया,जिनमें शामिल थे-युक्ता राशि, विनोद पाराशर,डॉ संजीव कुमार,डॉ वनिता शर्मा,डॉ कविता कपूर,राजकुमार श्रेष्ठ, विजय कुमार,साकेत चतुर्वेदी, नीरज,गोपाल सिंह, अनुराधा द्विवेदी, नैना देवी,संध्या श्रीवास्तव आदि।
इस अवसर  के कुछ चित्र,यहॉं साझा किये जा रहे हैं।




मंगलवार, अक्तूबर 19, 2021

'कल्लू मामा'का 'आगमन'की ओर से सम्मानU




गत रविवार, दिनाँक 17-10-2021 को,रोहिणी:दिल्ली के'हिंदुस्तानी भाषा अकादमी' सभागार में,साहित्यिक संस्था'आगमन'की ओर से वरिष्ठ व चर्चित व्यंग्यकार श्री सुभाष चंदर उर्फ 'कल्लू मामा'को विशिष्ट सम्मान दिया गया।सुभाष चंदर की अभी तक,व्यंग्य साहित्य की 47 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है।'कल्लू मामा जिंदाबाद' भी उनके चर्चित व्यंग्यात्मक लेखों का संग्रह है।उनकी प्रसिद्धि का आलम यह है कि, अब लोग उन्हें'कल्लू मामा'के नाम से बुलाने लगे हैं।उन्हें संस्था की 'काव्य-संगोष्ठी'में मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया गया था।
कार्यक्रम की अध्यक्षता अकादमी के संस्थापक-सुधाकर पाठक ने की।विशिष्ट अतिथि के रूप में साहित्यकार श्री सुमोद सिंह चरौरा,श्रीमती सूक्ष्मलता महाजन,श्री अशोक गुप्ता, डॉ महेंद्र शर्मा'मधुकर' व डॉ नीलम वर्मा मौजूद थे।
कॅरोना-काल के उपरांत, आगमन की इस काव्य-संगोष्ठी में,राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली तथा उसके आस-पास के राज्यों से पधारे 30 से भी अधिक कवि व कवयित्रियों ने अपनी श्रृंगार,राष्ट्र-प्रेम व हास्य-व्यंग्य से ओत प्रोत कवितायें पढ़ी।कविता पाठ करने वालों में शामिल थे-स्वीट एंजेल, मनीषा जोशी,इंदु निगम, राजेन्द्र निगम,तरुणा पुंडीर, इंदु मिश्रा, मीनाक्षी भसीन,डॉ महेंद्र शर्मा मधुकर, सीमा अग्रवाल, सरोज शर्मा,डॉ पूजा कौशिक,कंचन पाठक,पंकज सिंह चावला,कंचन गुप्ता,बी.के.शोभा,अजय अक्स,,कमर बदरपुरी,भास्कर आनंद, दीपा गुप्ता, अमित गुप्ता, राजेन्द्र महाजन,स्वदेश सिंह चिरोरा, शिव नारायण,अवधेश कनोजिया, आकांक्षा, भारती विभूति ओमप्रकाश कल्याणे, सुंदर सिंह,सीमा सागर,विनोद पाराशर व कई अन्य कवि व कवयित्रियाँ।
मुख्य अतिथि श्री सुभाष चंदर को वैसे तो हम एक व्यंग्यकार के रूप में ही जानते हैं, लेकिन इस काव्य-संगोष्ठी में संवेदनशील कवि के रूप में भी उन्हें देखने का मौका मिला।
अपनी'बूढे लोग!' कविता में वरिष्ठ जनों के एकाकीपन की पीड़ा को,उन्होंने जिस मार्मिकता से व्यक्त किया , उसे सहज ही समझा जा सकता है।उनकी कविता की पंक्तियाँ थी-
बूढ़े लोग!
आत्महत्या तो कर सकते हैं
लेकिन-प्रेम नहीं कर सकते!
'प्रेम'उनके लिए
एक अश्लील कृत्य है!
कविता पाठ के अलावा, इस अवसर पर डॉ महिंदर मधुकर, इंदू मिश्रा किरण, डॉ पूजा कौशिक की पुस्तकों व सूक्ष्मलता महाजन के व्यक्तित्व व कृतित्व पर केन्दित पत्रिका'ट्रू मीडिया'के विशेषांक का भी लोकार्पण किया गया।
लगभग 3-4 घन्टे तक चले,इस कार्यक्रम का कुशल संचालन कंचन पाठक ने किया।'आगामन' के संस्थापक श्री पवन जैन पिछले कई वर्षों से, वरिष्ठ कवियों व नवांकुरों को इस संस्था के माध्यम से अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर प्रदान कर रहे हैं,जो एक पुनीत कार्य है।धन कमाने की अंधी दौड़ में, जहाँ कुछ भी निःशुल्क मिल पाना लगभग असंभव है,वहीं पर सुधाकर पाठक जैसे साहित्य-प्रेमी व जुनूनी लोग, साहित्यिक कार्यक्रमों के लिए,'हिंदुस्तानी भाषा अकादमी' की ओर से निःशुल्क स्थान उपलब्ध करवा रहे हैं।सभी साहित्यकारों की ओर से ऐसी महान विभूतियों को नमन है।


रविवार, सितंबर 13, 2020

एक बैचैन रुह से साक्षाात्कर !

                     

साहित्य को समाज का दर्पण कहा गया है।यदि किसी विशेष काल-खंड के समाज को समझना है,तो यह आवश्यक है कि इस काल-खण्ड के साहित्य को पढ़ा जाये।इसी प्रकार किसी  लेखक की रचनाओं को यदि समझना है,तो अच्छा रहेगा कि उस लेखक के जीवन-मूल्यों,संघर्षों व जीवन परिस्थितियों  के बारे में पहले जान लिया जाये।लेखक के जीवन के संबंध में, यह जानकारी जुटाने के वैसे तो कई तरीके हैं,लेकिन सबसे अच्छा तरीका है उसका साक्षात्कार! किसी रचना को,सही तरीके से पकड़ना,व उसकी तहों को खोल पाना साक्षात्कार से संभव है।

वैसे तो साक्षात्कार को भी साहित्य की एक विधा ही माना गया है,लेकिन अन्य विधाओं की अपेक्षा इसमें काम बहुत कम हुआ है।हाल ही में,'इंडिया नेटबुक्स' द्वारा प्रकाशित वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रताप सहगल के साक्षात्कारों की एक पुस्तक आई है।इस पुस्तक में- प्रताप सहगल के कुल तेरह साक्षात्कार शामिल हैं।ये सभी साक्षात्कार,वर्ष,-1985 से 2015 के मध्य ,उनके कुछ वरिष्ठ, समकालीन या उनकी बाद की पीढ़ी के साहित्यकारों द्वारा लिए गये हैं।वैसे  तो सभी साक्षात्कार,पहले ही किसी साहित्यिक पत्र-पत्रिका में छप चुके हैं,लेकिन एक पुस्तक के रूप में,ये अब हमारे सामने आये हैं।

प्रताप सहगल अभी तक लगभग 55 वर्ष की अपनी अनवरत साहित्यिक यात्रा पूरी कर चुके हैं। इस दैरान,साहित्य की विभिन्न विधाओं में,उन्होंने 40 से अधिक पुस्तकों की रचना की है।साहित्य की हर विधा पर उनकी पकड है।देश के कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों  से उन्हें सम्मानित किया जा चुका है।ऐसे बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति के जीवन व उसके लेखन को साक्षात्कारों के जरिये समझना,एक आम पाठक व साहित्य के विद्यार्थी के लिये,उपयोगी होने के साथ साथ, रोचक भी है।

प्रताप सहगल के समकालीन व उनके मित्र,प्रख्यात व्यंग्यकार श्री प्रेम जनमेजय ने बडी ही रोचक शैली में उनका साक्षात्कार लिया है।प्रेम ने प्रताप सहगल से उनके बचपन,शिक्षा, नौकरी, शशि से उनके प्रेम-विवाह,दोस्तों के साथ उनके संबंध-जैसे व्यक्तिगत  विषयों तथा उनके साहित्यिक लेखन पर भी खुलकर सवाल पूछे हैं।सहगल ने भी उनके हर सवाल का बेबाकी से जवाब दिया हैं।

प्रताप का बचपन,दिल्ली की एक मजदूर बस्ती में बीता।उनके पिता स्वंय एक फैक्टरी में काम करते थे।मज़दूरों के जीवन से उनका सीधा नाता रहा।उन्होंने पढ़ाई के साथ-साथ,कारखानों में भी काम किया।निम्न मध्यवर्ग के जीवन संघर्षों को,न केवल उन्होंने बहुत नजदीक से देखा, बल्कि स्वंय भी झेला। संघर्षों  से अर्जितअनुभवों की आँच को ,उनकी रचनाओं में  साफ़ देखा जा सकता है।

दोस्तों के संबंध में, सहगल का कहना है -"दोस्तों से जिंदगी में बहार रहती है।अगर मैं किसी दोस्त से खफ़ा होता हूँ तो ज़रा व्यवस्थित मन से विचार करता हूँ कि आखिर मैं खफ़ा क्यों हूँ?ज्यादातर हम दोस्तों से इसलिए खफ़ा रहतेे हैं कि वे हमारी अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरते। तब दुःख होता है लेकिन दुःख का कारण तो मेरी उम्मीद ही होती है न! फिर यह भी सोचता हूँ कि दोस्तों से भी उम्मीद न करूँ तो किससे करूँ?

प्रताप को किसी एक फ्रेम में नहीं बाधा जा सकता।जैसा उनका जीवन विविधताओं से भरा है,वैसा ही उनका लेखन है।जहाँ उन्हें खाने में विविध प्रकार के व्यंजन पसंद है, वहीं नई नई जगह घूमना भी पसंद है।एक जगह टिककर बैठना, उनके स्वभाव में नहीं है।यही हाल,उनके लेखन का है। वे कभी कवि, कभी कथाकार, कभी नाटककार,कभी आलोचक तो कभी बाल साहित्यकार के रूप में,एक नई कृति हमारे सम्मुख लेकर आ जाते हैं।

प्रेम ने जब उनसे इस वैविध्य का कारण पूछा, तो प्रताप का कहना था कि- वे स्वयं को किसी एक फ्रेम में बांधकर नहीं रख सकते।वे एक बैचेन रूह हैं ,जो एक विधा से दूसरी और दूसरी से तीसरी में आवाजाही करती रहती है।इससे ताज़गी बनी रहती है और वैविध्य भी।

लेखन,साहित्यिक सरोकार और वैचारिक प्रतिबद्धता के संबंध में, सहगल का मानना है कि लेखन में उन्हें आनन्द आता है और आनन्द एक ऐसा पुरस्कार है,जिसके सामने सब बेमानी है।वे अपने अनुभवों को शब्दों के माध्यम से विस्तार देते हैं।वे मानते हैं कि जीवन किसी भी विचारधारा से बड़ा है।लेखन में विचार,किन्ही परिस्थितियों में रखकर ही हो सकता है।


युवा कवि व व्यंग्यकार लालित्य ललित द्वारा लिया गया साक्षात्कार भी इस पुस्तक में शामिल है।ललित ने प्रताप से विभिन्न विधाओं में लिखे गये उनके साहित्य पर सवाल पूछे।जब सहगल से पूछा गया कि उन्होंने कविता, नाटक,कथा,आलोचना, कहानी, उपन्यास व यात्रा संस्मरण-सभी में अच्छा लिखा है, तो वे स्वयं को किस विधा में अधिक निपुण मानते हैं? उनका कहना था कि वह स्वंय को सिर्फ़ एक लेखक मानते हैं।उन्हें विषय के अनुरूप विधा की ज़रूरत  महसूस होती है, उस विधा को वे चुन लेते हैं।यह कहना कि वह फलां विधा में निपुण हैं और फलां में नहीं, कुछ अटपटा सा लगता है।फिर भी उन्हें एक नाटककार के तौर पर ज्यादा जाना जाता है।लेखक की पहचान के संबंध में उनका कहना है कि जब तक कोई लेखक जिंदा रहता है, उसकी पहचान बदलती रहती है।नाटक सर्वाधिक जनतांत्रिक विधा है,जो मंच के माध्यम से लोगों तक सीधा पहुँचता है।नाटक जब मंच पर आता है तो आप जल्दी पहचाने जाते हो।

डॉ गुरचरण सिंह ने प्रताप के विभिन्न साहित्यिक विधाओं में लिखे गये  उनके सहित्य पर काफी विस्तार से बातचीत की है।जब  उनकी रचनाओं में  कहीं पर भी ग्रामीण परिवेश न दिखाई देने पर सवाल किया  गया तो प्रताप का कहना था कि उनका संघर्ष शहर से जुड़ा है, गाँव से नही,इसलिए रचनाओं में गाँव कहाँ से आयेगा? आयेगा तो झूठा आयेगा।

प्रताप की कविताओं का मूल स्वर-विरोध व विद्रोह है,लेकिन रचना के अंत में यह ठंडा पड़ जाता है या वे समझौते की ओर अग्रसर हो जाते हैं।डॉ गुरचरण सिंह ने जब इसका कारण जानना चाहा, तो सहगल ने बताया कि उनकी कविताएं-आम जनमानस की कविताएँ हैं।आम आदमी की चारित्रिक बनावट  ही ऐसी है कि वह दूसरे के कंधे पर चढ़कर विद्रोही दिखना चाहता है या विद्रोह करता है,तो कुछ सुविधाएं मिलते ही,विद्रोह समझौते में बदल जाता है,ऐसे में ठंडापन तो आयेग ही।इसी बात की अभिव्यक्ति उनकी रचनाओं में मिलती है।

हर लेखक की अपनी रचना-प्रक्रिया होती है।कोई रचनाकार किसी नियत समय पर ही अपना रचना कर्म करता है, तो कोई कभी भी  लिख लेता है। इस संबंध में प्रताप का कहना है कि उनके लेखन का कोई नियत समय नहीं है।लेखन के लिए अध्य्यन व सूक्ष्म दृष्टि की जरूरत होती है ।कविता कब आकर लेने लगती है,इसके पीछे का  कोई तर्क उन्हें अभी तक समझ नहीं आया।शब्दों में ढलते ढलते रचना के कई प्रारूप बनते-मिटते रहते हैं,लेकिन कागज़ पर आने के बाद कई बार वह प्रारूप अंतिम हो जाता है।लेखन हो या कोई अन्य कला,उसके लिए प्रकृत प्रतिभा को वे  पहली शर्त मानते हैं।बिना इसके केवल ज्ञान-विज्ञान,अभ्यास व अनुभव से कोई रचना नहीं की जा सकती

साहित्यिक जगत में जीवित रहने व उसमें ख्याति प्राप्त करने के लिए,आजकल कुछ लेखक किसी राजनीतिक विचारधारा/पार्टी से जुड़ जाते हैं।साहित्य और राजनीतिक विचारधारा के सम्बंध में प्रताप का मानना है कि तत्कालिक ख्याति प्राप्त करने के लिए, राजनैतिक दल के प्रश्रय में चलने वाले लेखक एवं कला मंचो से जुड़ाव,प्रसिद्ध होने में मदद करता है, पर ऐसी ख्याति दीर्घकालिक नहीं होती।दीर्घजीवी तो लेखक का रचनाकर्म ही होता है।इसी प्रकार धर्म के संबंध में सहगल की मान्यता है कि साहित्य धर्म से परिचालित नहीं होता।सम्बन्धों की जिन बारीकियों व उलझनों का धर्म निषेध करता है,साहित्य की यात्रा,सृजन की प्रक्रिया वहीं से शुरू होती है।

सहगल लम्बी कविता धारा के एक महत्वपूर्ण रचनाकार है।कुछ लेखक कविता को केवल कविता मानते हैं, वह उसे छोटी या लम्बी कविता के खाने में नहीं रखते।युवा आलोचक चन्दन कुमार ने  जब इस पर उनसे बात की,तो उनका कहना था कि लघु या छोटी कविता मात्र एक क्षण के अनुभव को पकड़ती है वही लम्बी कविता एक विकासशील माध्य्म है।किसी भी तरह की कोई शास्त्रीय जकड़न स्वीकार नहीं करती।लम्बी कविता पाठक को कई स्तरों पर अपने साथ जोड़ती है व उद्वेलित करती है

साहित्य में भी कुछ लोग जोड़ तोड़ के बल पर,सफलता प्राप्त करना चाहते हैं।ऐसे लोगों के लिए सहगल की सलाह कि जोड़-तोड़ की राजनीति आपको नौकरी दिलवा सकती है, पुरस्कार भी दिलवा सकती है,आप में यदि प्रतिभा है,तो उसका परिष्कार भी कर सकती है, प्रतिभा नहीं है तो पैदा नहीं कर सकती और न ही जोड़ तोड़ करके कोई रचना पैदा होती है।जोड़ तोड़ आदमी के अंदर छिपी चालाकी का नाम ही तो है।अगर मौजूद पीढ़ी के कुछ लोग मात्र जोड़ तोड़ से ही रचनात्मकता प्राप्त करना चाहते हैं,तो यह संभव नहीं है।जोड़ तोड़ तो ,दरअसल प्रतिभा के ताबूत पर गड़ी हुई कील है।

डॉ शकुंतला कालरा ने, सहगल के बचपन, किशोरावस्था के संघर्ष तथा उनके बाल साहित्य पर विस्तार से बातचीत की है।प्रताप का बाल्यकाल  व किशोरावस्था काफी कष्टपूर्ण रहा।उनका परिवार विभाजन के बाद,लुटा-पीटा भारत आया था।उनके पिता आर्यसमाजी थे।आर्यसमाज की विचारधारा का प्रभाव, बचपन में उनपर भी पड़ा।प्रश्न उठाना और तर्क करना उन्होंने उसी से सीखा।किशोरावस्था में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भी जुड़े,लेकिन कुछ समय बाद उससे भी  मोह भंग हो गया।वाम विचारधारा का प्रभाव भी उनपर पड़ा।सहगल का मानना है कि कोई भी विचारधारा मानवता से बड़ी नहीं हो सकती।अपने विद्यार्थी जीवन में,पढ़ाई में,वे शुरू से ही मेघावी रहे।लेखन की शुरुआत भी 1961 में एक कहानी 'बेकर' से हुई,जो उस समय के अखबार'वीर अर्जुन'में प्रकाशित हुई।वर्ष-1962-63 में,उन्हें अपने स्कूल से निकलने वाली पत्रिका'दीवार' का छात्र संपादक बनाया गया।उसके बाद'ज्ञान-वाटिका' का सम्पादन भी उन्होंने किया।विद्यार्थी जीवन में बच्चन, मीर,ग़ालिब, दाग़ और फ़िराक की कविताओं से वे काफ़ी प्रभवित हुए।

सहगल ने बाल साहित्य भी काफी लिखा है।उनके तीन बाल नाटक व एक बाल कहानी संग्रह अभी तक प्रकाशित हो चुके हैं।उनका यह भी कहना है कि जितना बाल साहित्य अभी तक प्रकाशित हुआ है,उससे कहीं अधिक अप्रकाशित पड़ा है।बड़ो के नाट्य-लेखन व बच्चों के नाट्य लेखन में अंतर को स्प्ष्ट करते हुए,उन्होंने कहा कि बच्चों के लिए नाटक में एक ऐसे संसार की रचना जरूरी है, जहाँ, उनकी कल्पना को पंख लग सकें,उनके अंदर बैठा मासूम कलाकार सामने आ सके,बच्चा पहले से थोड़ा स्याना होकर लोटे।बाल नाटक में,विचारधाराओं के घमासान की अपेक्षा भाव,गुण व मूल्यों की सार्थकता पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

इसके अलावा अन्य साहित्यकार, जिन्होंने साहित्य से जुड़े कुछ गंभीर सवाल प्रताप के सामने रखे,उनमें शामिल हैं-ज्योतिर्मय आनंद, चंदन कुमार,डॉ कीर्ति केसर,सीमा भारती, भावना शुक्ल, त्रिपुरारी कुमार शर्मा, नूर ज़हीर और  युवा कवि व पत्रकार मज़ीद अहमद।

पुस्तक का कवर बहुत ही आकर्षक है।एक-दो जगह रह गयी भाषागत त्रुटि को यदि छोड़ दिया जाये,तो कवि,नाटककार,कथाकार, आलोचक और बाल साहित्यकार प्रताप सहगल के  व्यक्तित्व व लेखन को समझने के लिए,यह एक महत्वपूर्ण पुस्तक है।

पुस्तक: मेरे साक्षात्कार(प्रताप सहगल)

प्रकाशक:इंडिया नेटबुक्स

सी-122,सै-19

नोएडा-201301

गौतमबुद्ध नगर(एन. सी.आर.दिल्ली)

मूल्य:₹200.00(पेपर बैक)

        ₹250.00(हार्ड बॉन्ड)




शनिवार, अगस्त 15, 2020

स्वतंत्रता दिवस पर'साधना टी.वी.पर कविता पाठ

        कल शाम 6.00 बजे,'साधना टी.वी' पर'सतमोला कवियों की चौपाल' के 611वें एपिसोड का प्रसारण किया गया।इस एपिसोड में मुझे भी अपनी कविताएँ सुनाने का अवसर मिला।श्रीमती मृदुला सिन्हा( वरिष्ठ साहित्यकार व पूर्व राज्यपाल गोवा) इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थीं।मेरे अलावा,जिन अन्य कवियों ने अपनी अपनी कविताएं पढ़ी,उनमें शामिल  थे-डॉ कीर्ति काले(अंतरराष्ट्रीय कवयित्री),सोनम आर्य(विलासपुर),यश जैन(दिल्ली),अनुराग प्रबल पटेल(गाज़ियाबाद), सुरेश कुमार जैन(हैदराबाद),आशु शर्मा(मुंबई),कृष्णा भीवानीवाला(कलकत्ता) और संजू सूर्यम ठाकुर(मैनपुरी)।कार्यक्रम का आयोजन, स्वतंत्रता दिवस की 74 वीं व 'सतमोला कवियों की चौपाल' की 16वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में किया गया था। 'सतमोला कवियों की चौपाल' कविताओं का एक मात्र कार्यक्रम है,जो पिछले 16 वर्ष से लगातार चल रहा है,इसके लिए कार्यक्रम के प्रोड्यूसर, प्रवीण आर्य बधाई के पात्र हैं।कार्यक्रम का संचालन-रजनी अवनी ने किया।






     









बुधवार, मार्च 04, 2020

अधूरे सपनों की कसक!




प्रत्येक व्यक्ति, थोड़ा समझदार होते ही,सपनें देखना शुरू कर देता है और सपने देखने का यह क्रम,आजन्म चलता रहता है।उसके कुछ सपने पूरे होते हैं,तो कुछ अधूरे ही रह जाते हैं।इन अधूरे सपनों की कसक हमेशा बनी रहती है।मैंने भी कभी अध्यापक या पत्रकार बनने का सपना देखा था,लेकिन नहीं बन सका।हिंदी साहित्य में शुरू से ही रूचि रही,इसलिए लेखन से जरूर जुड़ गया। वर्ष-2006 के आसपास ब्लॉगिंग से जुड़ा, तो जोश जोश में 4 ब्लॉग भी बनाये। कुछ वर्षों तक उनपर लगातार लिखा।ब्लॉगर मित्रों का सहयोग व प्रोत्साहन भी मिला।फेसबुक व व्हाट्सएप जैसे नये नये सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म आने के बाद,ब्लॉग पर जाना,जैसे छूट सा गया।
गत रविवार,दिल्ली के मुखर्जी नगर में, रेखा श्रीवास्तव द्वारा संपादित एक पुस्तक'ब्लॉगरों के अधूरे सपनों की कसक' का विमोचन किया गया।इस पुस्तक में 50 ब्लॉगरों के अधूरे सपनों की कसक को,साफ़ महसूस किया जा सकता है।इस अवसर पर ब्लॉगिंग पर  ही केंद्रित विषय:'ब्लॉगिंग: कल,आज और कल' पर भी चर्चा की गई।इस परिचर्चा में भाग लेने वाले मुख्य वक्ता थे-किशोर श्रीवास्तव, खुशदीप सहगल,दिगम्बर नासवा,वन्दना गुप्ता, सुनीता शानू,नीलिमा शर्मा,शहनवाज़, मुकेश कुमार सिन्हा, अजय कुमार झा और राजीव तनेजा।
यदि आप भी,इन ब्लॉगर मित्रों के अधूरे सपनों की कसक को महसूस करना चाहते हैं,तो यह पुस्तक आपको अवश्य पढ़नी चाहिए।

सोमवार, अक्तूबर 07, 2019

अमर भारती साहित्य संस्कृति संस्थान-हिंदी-उर्दू तहज़ीब का संगम

अमर भरती साहित्य संस्कृति संस्थान:हिंदी-उर्दू तहजीब का संगम

कल,गाज़ियाबाद(उत्तर-प्रदेश) के 'सिल्वर लाइन प्रेस्टिज स्कूल  के सभागार में,'अमर भारती साहित्य संस्कृति संस्थान' की मासिक गोष्ठी का आयोजन किया गया।इस गोष्ठी में,गाजियाबाद,नोएडा, हापुड़, दिल्ली व आसपास के क्षेत्र के  60 से  अधिक साहित्यकार,कवि व पत्रकार मौजूद थे।
    कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रख्यात लेखक एवं कला समीक्षक श्री हरियश राय जी ने की।मुख्य अतिथि,मशहूर शायरा डॉ मीना नक़वी साहिबा व विशिष्ट अतिथि श्रीमती उर्वशी अग्रवाल 'उर्वि' थी।
    मुख्य अतिथि डॉ. मीना नक़वी ने अपने वक्तव्य में,अमर-भारती के मंच को हिंदी उर्दू तहज़ीब का संगम बताया।विशिष्ट अतिथि श्रीमती उर्वशी अग्रवाल उर्वि की कविता' ME TOO' काफी चर्चित रही।
इस अवसर पर डॉ.धनंजय सिंह, श्री गोविंद गुलशन, डॉ. माला कपूर, श्री सुरेंद्र सिंघल, डॉ. रमा सिंह, श्री मासूम ग़ाज़ियाबादी, श्री अतुल सिन्हा, डॉ. बृजपाल सिंह त्यागी, श्रीविलास सिंह, श्री कुमैल रिज़वी, श्री सुभाष अखिल, श्री सरवर हसन सरवर,श्री सीताराम अग्रवाल, डॉ. तारा गुप्ता, सुश्री नेहा वैद, सुश्री  शालिनी सिन्हा, श्री आलोक यात्री, श्री प्रवीण कुमार, श्री रमेश कुमार भदौरिया, श्री आशीष मित्तल, सुश्री तूलिका सेठ, सुश्री कीर्ति रतन, सुश्री कल्पना कौशिक, सुश्री मधुरिमा सिंह, सुश्री कमलेश त्रिवेदी, सुश्री राज किशोरी, श्री सुरेंद्र शर्मा, श्री इंद्रजीत सुकुमार, श्री विनोद पाराशर, श्री सुरेश मेहरा, सुश्री कुसुम पंडेरा, श्री ललित चौधरी व कार्यक्रम की कुशल मंच संचालिका श्रीमती तरुणा मिश्रा ने अपनी कविताएँ पढ़ी।

 





शनिवार, सितंबर 28, 2019

वरिष्ठ साहित्यकार श्री महावीर प्रसाद अग्रवाल का सम्मान-समारोह

वरिष्ठ साहित्यकार श्री महावीर प्रसाद अग्रवाल का सम्मान-समारोह।

किसी गंभीर बात को भी,चुटीले अंदाज़ में कहने की कला में माहिर,वरिष्ठ साहित्यकार श्री महावीर अग्रवाल का सम्मान, कल,दिल्ली में आयोजित,एक सादे समारोह में किया गया।'सविता चड्ढा जन-सेवा समिति' द्वारा आयोजित, इस कार्यक्रम में, दिल्ली व आसपास के क्षेत्र से,कई पत्रकार,कवि व वरिष्ठ साहित्यकार मौजूद थे।मुंबई से पधारे श्री महावीर अग्रवाल  के सम्मान के साथ-साथ, उनकी दो पुस्तकों-'यंत्र-तंत्र-सर्वत्र' व'लिखता- लिखवाता वही' का लोकार्पण भी किया गया।इस अवसर पर उनके सम्मान में ही, एक कवि-गोष्ठी  ही हुई,जिसमें-श्याम सुंदर गुप्त,विनोद पाराशर, पवन शर्मा परमार्थी, विदुषी शर्मा, गोविंद सिंह पंवार,पूनम शर्मा, सविता चड्डा, ओम सपरा,प्रो०कुलदीप सलिल व कुछ अन्य कवियों ने कवितायें पढ़ी।आलोकपर्व के संपादक-श्री रामगोपाल शर्मा,श्रीमती सरोज शर्मा,आमोद कुमार व  श्री महावीर प्रसाद अग्रवाल जी के कई मित्रगण व सम्बन्धी भी इस अवसर पर मौजूद थे।