रविवार, नवंबर 30, 2014

अंधेरे समय को चीरती-कुमार अम्बुज की कविताएँ






29 नवंबर,2014 को नयी दिल्ली के’गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान’में ’नव-सर्वहारा सांस्कृतिक मंच’ की ओर से चर्चित कवि’कुमार अम्बुज’ की कविताओं के एकल  कविता-पाठ का कार्यक्रम रखा गया।कार्यक्रम की अध्यक्षता-डा0कर्ण सिंह चौहान ने की।समकालीन दुनिया के संपादक श्री आनंद स्वरुप वर्मा तथा श्री शिवमंगल सिंह सिद्धांतकर भी इस अवसर पर मंच पर आसीन थे।
श्री रविन्द्र कुमार दास ने कवि कुमार अम्बुज का परिचय देते हुए कहा कि-उनके अभी तक पाँच कविता-संग्रह,एक कहानी संग्रह तथा गद्य की अन्य विधा में लिखी गयी अन्य पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।उनके कविता-संग्रह-
’किवाड़’,’क्रूरता’,’अन्तिम’,’अमीरी रेखा’ व ’कवि ने कहा’ की कई कविताएं काफी चर्चित रही हैं। देश की कई प्रतिष्ठित संस्थाओं द्वारा उन्हें अनेक साहित्यिक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।
      देश के साहित्यकारों/सांस्कृतिक कर्मियों में’बाबा’ के नाम से चर्चित श्री शिव मंगल सिंह सिद्धांतकर ने मुख्य अतिथि कवि-’कुमार अम्बुज’ तथा अन्य गण-मान्य अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि-कविता मानवता के प्रयायों में से एक है।दर-असल कविता उन सवालों का जवाब देती है,जिनका जवाब हमें कहीं से नहीं मिलता। बाबा ने आगे कहा कि अलग-अलग संगठन अंधेरे को चीरने के लिए,अलग-अलग तरह के औजारों का प्रयोग करते हैं।नव-सर्वहारा सांस्कृतिक मंच कविता को एक औजार के रुप में लेते हुए,अंधेरे को चीरने का प्रयास कर रहा है।
      अतिथि कवि ’कुमार अम्बुज’ने इस अवसर पर अपनी लगभग 25 से अधिक प्रतिनिधि व चर्चित कविताओं का पाठ-दिल्ली व उसके आस-पास के क्षेत्रों से पधारे प्रतिष्ठित साहित्यकारों,पत्रकारों व नवोदित कवियों व कवित्रियों की उपस्थिति में किया।उनकी कुछ चर्चित कविताएं हैं-’जाँच-पड़्ताल‘,‘भरी बस में लाल साफेवाला आदमी’,‘तुम्हारी जाति क्या है?’,‘जेब में सिर्फ दो रुपये’,‘नयी सभ्यता की मुसीबत’,’क्रूरता’,‘जो दर-असल हमारी बहनें थी’,‘कवि की अकड़’ और ’मेरा प्रिय कवि’।
      कुमार अंम्बुज की कविताएँ-बहुत ही सहज व सरल हैं। उनकी कविताओं में एक आम आदमी का दर्द है जो कभी ’भरी बस में लाल साफेवाला आदमी’ के रुप में मुखर होता है तो कभी’जेब में सिर्फ दो रुपये’देखकर। नारी की पीड़ा को भी अपनी कविताओं में उन्होंने बड़ी मार्मिकता से अभिव्यक्ति दी है। कवि के अकड़पन को,बिना किसी लाग-लपेट के,अपनी कविता’कवि की अकड़’ में बहुत ही सहजता से व्यक्त किया है।
      कार्यक्रम के दूसरे सत्र में-कुमार अंम्बुज से-उनकी कविताओं और उनकी रचना-प्रक्रियाँ को लेकर प्रश्न किये गये। कवयित्री’अंजु शर्मा ने प्रश्न उठाये कि वे नारी न होते हुए भी, नारी-पीड़ा को इतनी सहजता से अपनी कविताओं में कैसे व्यक्त करते हैं?आज  के समय की वे कौन सी चुनौतियाँ है जिनका कविता सामना कर रही है? वरिष्ठ कवि श्री मंगलेश डबराल ने कुमार अंम्बुज से उनकी’रचना-प्रक्रिया’ के संबंध में सवाल किया। उन्होंने बडी सहजता से,कभी सीधे-सीधे तो कभी कविता के रुप में पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दिये।
      अंत में,अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में –डा0कर्ण सिंह चौहान ने कहा कि यह कहना एकदम गलत है कि पाठक के मन में कविता की जिज्ञासा कम हुई है।केवल कवि ही सभी चीजें तय नहीं करता,समय भी कई चीजों को तय करता है।आज हमारे कहने और करने में कोई संबंध नहीं रह गया है। जो कविताएं लिखी जा रही हैं वे सकारात्मक-बोद्य से उपजी कविताएं न होकर,आक्रोश में लिखी गयी कविताएं हैं।
      इस कार्यक्रम की कुछ अन्य तस्वीरें