बुधवार, मार्च 04, 2020

अधूरे सपनों की कसक!




प्रत्येक व्यक्ति, थोड़ा समझदार होते ही,सपनें देखना शुरू कर देता है और सपने देखने का यह क्रम,आजन्म चलता रहता है।उसके कुछ सपने पूरे होते हैं,तो कुछ अधूरे ही रह जाते हैं।इन अधूरे सपनों की कसक हमेशा बनी रहती है।मैंने भी कभी अध्यापक या पत्रकार बनने का सपना देखा था,लेकिन नहीं बन सका।हिंदी साहित्य में शुरू से ही रूचि रही,इसलिए लेखन से जरूर जुड़ गया। वर्ष-2006 के आसपास ब्लॉगिंग से जुड़ा, तो जोश जोश में 4 ब्लॉग भी बनाये। कुछ वर्षों तक उनपर लगातार लिखा।ब्लॉगर मित्रों का सहयोग व प्रोत्साहन भी मिला।फेसबुक व व्हाट्सएप जैसे नये नये सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म आने के बाद,ब्लॉग पर जाना,जैसे छूट सा गया।
गत रविवार,दिल्ली के मुखर्जी नगर में, रेखा श्रीवास्तव द्वारा संपादित एक पुस्तक'ब्लॉगरों के अधूरे सपनों की कसक' का विमोचन किया गया।इस पुस्तक में 50 ब्लॉगरों के अधूरे सपनों की कसक को,साफ़ महसूस किया जा सकता है।इस अवसर पर ब्लॉगिंग पर  ही केंद्रित विषय:'ब्लॉगिंग: कल,आज और कल' पर भी चर्चा की गई।इस परिचर्चा में भाग लेने वाले मुख्य वक्ता थे-किशोर श्रीवास्तव, खुशदीप सहगल,दिगम्बर नासवा,वन्दना गुप्ता, सुनीता शानू,नीलिमा शर्मा,शहनवाज़, मुकेश कुमार सिन्हा, अजय कुमार झा और राजीव तनेजा।
यदि आप भी,इन ब्लॉगर मित्रों के अधूरे सपनों की कसक को महसूस करना चाहते हैं,तो यह पुस्तक आपको अवश्य पढ़नी चाहिए।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें