प्रवासी भारतीय कवयित्री ‘डा0शील
निगम’ के सम्मान में
निर्गुट काव्य-संगोष्ठी’
8
फरवरी,2015 को नांगलोई,दिल्ली में’सुरभि-संगोष्ठी’ व ’हम साथ-साथ हैं’संस्थाओं के
संयुक्त प्रयास से प्रवासी भारतीय कवयित्री
‘डा0शील निगम’ के सम्मान में एक काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का
संचालन श्री किशोर श्रीवास्तव जी ने अपने चिर-परिचित अंदाज में किया। इस अवसर पर
’राष्ट्र-किंकर’के सम्पादक डा.विनोद बब्बर,‘जनता-टी.वी’ के श्री कृष्ण कुमार
विद्यार्थी व मिडिया से जुड़े कई अन्य गण-मान्य व्यक्ति भी मौजूद थे। इस कवि-गोष्ठी
में 25 से अधिक कवियों ने अपनी रचनाएँ पढी।
आजकल
कविताएँ,गीत,गज़लें बहुत लिखी जा रही हैं।कवि-सम्मेलनों व गोष्ठियों में पढी भी जा
रहीं हैं,लेकिन ऐसी कविताएँ,गीत या गज़लें बहुत कम हैं जो श्रोताओं पर अपना प्रभाव
छोड़ती हैं। कुछ कवि अच्छा लिखते के बावजूद,अपनी रचना को ढंग से पढ नहीं पाते,जिससे
रचना श्रोताओं को प्रभावित नहीं कर पाती। प्रियंका राय एक ऐसी युवा कवयित्री है जो
लिखती भी बढिया है और पढती भी बढिया है। इस गोष्ठी में जब उन्होंने अपनी कविता की
निम्नलिखित पंक्तियाँ,अपने ही अंदाज में पढी,तो सभी श्रोता भावुक हो उठे-
’पग-पग
कपट भरी राहों से, अब निकला नहीं जाता
माँ
मुझको भाहों में भर ले,अब तो चला नहीं
जाता’
नरेश
मलिक ने अपनी कविता में नारी की पीड़ा को व्यक्त करते हुए कहा-
‘जो
नदी की तरह बहती है
पर
वह-किसी को कुछ न कहती है।
सुजीत
शोकीन का कहना था-
‘जिंदगी
यूँ गुजार दी हमने
चंद
लम्हों पर वार दी हमने’
नथ्थी
सिंह बधेल जी ने श्रोताओं के मन को ’ब्रज की होली’गाकर रंग दिया।
कविता
भारद्वाज ने अपनी कविता में उस दुल्हन की व्यथा को व्यक्त किया जिसकी शादी एक
सैनिक से हुई,जिसे शादी से अगले दिन ही,बार्डर पर ड्यूटी के लिए बुला लिया गया-
‘आई
बारात मेरी धूम-धाम से
बैंड-बाजे
बजे रह गये
‘चार
बातें उनसे मैं कर न सकी’
राम
श्याम हसीन, जिस खूबसूरती से लिखते हैं,उसी खूबसूरत अंदाज में पढते भी हैं।उनके एक
चर्चित गीत की पंक्तियाँ-
‘बिन
तुम्हारे जिन्दगी आधी सी है
गम
भी आधा,खुशी आधी सी है’
शहरी
जीवन की विसंगतियों पर कटाक्ष करते हुए सुशीला शिवचरण ने अपनी कविता में कहा-
‘सटे-सटे
से घर यहाँ,कटे-कटे से लोग’
अपने
अंधे स्वार्थ के लिए कुछ लोग छोटे-छोटे बच्चों का शोषण करते हैं। उन बच्चों की
पीडा को दीपक गोस्वामी ने अपनी रचना में बडी ही मार्मिकता से प्रस्तुत किया-
‘जिनके
हिस्से की मिट्टी बस उनके सपने बोने दो
अपने
अंधे लालच को,बच्चे न भूखे सोने दो’
आज
आदमी जीते जी मर रहा है।उसके जीवन में गम ही गम हैं। राम.के.भारद्वाज ने इस हकीकत
को अपनी कविता में इस प्रकार व्यक्त किया-
‘मेरे
कंधों पर मेरी लाश
है
न अजीब-सी बात’
प्रेमिका
के अपने साजन से मिलने की व्याकुलता को अपनी कविता में ‘विकास यशकिर्ति ने कुछ इस
व्यक्त किया-
‘कुछ
दूरी पर रह गया,जब साजन का गाँव
पायल
गिर गयी टूट कर,लचका मेरा पाँव’
‘सीमा
विश्वास’ ने अपनी कविता में आसमान को छूने की चाह व्यक्त की,तो ‘जितेन्द्र कुमार ने
अपनी कविता में प्रिय को अपने दिल की बात बताने की सलाह दी। जिस कार्यक्रम का
संचालन किशोर श्रीवास्तव जी कर रहे
हों,वहाँ हास्य-व्यंग्य की बौछार न हो, हो ही नहीं सकता। एक गज़ल में उनकी मासूमियत
का अंदाज देखिये-
‘तुमने
मुझको भुला दिया तो मैं क्या करता
गैरों
ने दिल मिला लिया तो मैं क्य करता’
हास्य-व्यंगय
के इसी अंदाज को डा-टी.एस.दलाल ने अपनी रचनाओं में जारी रखा।इस अवसर पर मनोज
मैथली,असलम बेताब,राजीव तनेजा,गजेन्द्र प्रताप सिंह,विनोद पाराशर,बबली
वशिष्ठ,पी.के.शर्मा,शशी श्रीवास्तव,मनोज भारत,दुर्गेश अवस्थी,पंकंज त्यागी,भूपेन्द्र
राघव,संतोष राय, व राजकुमार यादव ने भी अपनी रचनाएँ पढीं।
इस
अवसर पर कार्यक्रम की विशिष्ठ अतिथि डा.शीला निगम का सम्मान भी किया गया। राष्ट्र
किंकर के संपादक व साहित्यकार डा.विनोद बब्बर,साहित्यकार श्याम स्नेही जी व जनता
टी.वी.के श्री कृष्ण कुमार विद्यार्थी जी भी इस अवसर पर मौजूद थे। उनकी कविता की
ये पंक्तियाँ उपस्थित लोगों के जहन में देर तक गूँजती रहीं-
‘आपसे
प्यार हो गया कैसे
ये
चमत्कार हो गया कैसे
प्यार
को मैं गुनाह कहता था
लेकिन
यह गुनाह हो गया कैसे’