गांव अभी सोकर जगा था
नाली पर बच्चे बैठे थे।
शहरों में जगह की बहुत कमी है।
वे अपना शौक कैसे पूरा करें,जिन्हें पेड.-पौधों से प्रेम है।‘खुशबु’ ने बालकानी
में जगह देखी और वहीं पर अपने गमले सजा दिये।‘विकास राणा’ की चिंता है कि आने वाले समय में ’चलता-फिरता आदमी दीवार
सा रह जायेगा’।’आनंद’ने अपने गांव
के ठंडे पानी के तालाब के किस्से अपनी कविता के माध्यम से सभी को सुनाए।’कृष्ण
कान्त’जब कई वर्षों के बाद अपने गांव लौटे तो पुरानी स्मृतियों में खो गये। गांव
से शहर की ओर पलायन करते समय मन में गम और खुशी दोनों ही तरह के भाव होते
हैं।अनुपमा गर्ग की कविता की इन पंक्तियों का शायद यही भाव है-
’चला था मैं गांव से
आज मन हस रहा है
रो रहा है’
रति अग्निहोत्री पहुंच गयी मुरादाबाद की पीतलनगरी। अपनी
कविता में उन्होंने पीतलनगरी के कामगारों के दर्द को बडी मार्मिकता से व्यक्त
किया। काव्य गोष्ठी के अंतिम दौर में, अपनी कविता-‘यहां भी कभी गांव था’ लेकर
पहुंचे विनोद पाराशर ने,शहरीकरण के प्रभाव में आ रहे गांवों के दर्द को अभिव्यक्ति
दी।जिन अन्य कवि/कवियित्रियों ने इस अवसर पर अपनी रचनाएं पढीं,वे थे-मुदिता,प्रकृति,स्वाति
चावला,आकांक्षा,अलसर,अरुण व शारिक असीम।
कार्यक्रम की अन्य झलकियाँ
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विनोद पराशर जी आपने संक्षेप में पूरे आयोजन का विवरण बड़ी खूबसूरती से दे दिया ......मुख्य रचनाएँ ,उनके आधार बिंदु ,गाँव ,शहर और उनके बीच का फ़ासला ,ख्यालों और हकीकत के दायरे में कैसे कैसे मानव मन को प्रभावित कर रहा है ..................सभी कुछ ......आप बधाई के पात्र हैं साथ ही रति और त्रिपुरारी के सफल आयोजन एवं संचालन के लिए उन्हें भी मेरी दिली मुबारकबाद
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर…
जवाब देंहटाएंधन्यवाद,सुमित जी।
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