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'व्यंग्य का शून्यकाल' पुस्तक का विमोचन चित्र
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अप्रैल 2011 में 'हिंदी ब्लॉगिंग : अभिव्यक्ति की नई क्रांति' पुस्तक के विमोचन और 'हिन्दी साहित्य निकेतन और परिकल्पना सम्मान' तथा 'नुक्कड़ सम्मान' समारोह धज्जियां उड़ाते हुए इस पोस्ट में अपनी दिव्यता का संपूर्ण भव्यता के साथ बखान किया था। आप http://raj-bhasha-hindi.blogspot.in/2011/05/blog-post_03.html इस पोस्ट को सारी टिप्पणियों के साथ पढ़ लीजिए और विचार कीजिए।
इस विश्व पुस्तक मेले में ज्योतिपर्व प्रकाशन के नाम से अरुण चन्द्र राय ने अपनी धर्मपत्नी के नाम से प्रकाशन आरंभ किया है। जिसमें प्रकाशित पुस्तकों का मूल्य प्रति पुस्तक 99/- रुपये रखा है।
1. विमोचन कार्यक्रम में शामिल आगंतुकों के लिए जल की व्यवस्था बोतलों के रूप में की तो गई थी परंतु आवश्यक होने पर ही उन्हें प्यासों को दिया जाना था परंतु कहीं से ऐसी जोरदार मांग न होने के कारण पानी की बोतलों की भरी पेटियां लौटा कर ले जाई गईं।
2. कार्यक्रम में अवसर के उपयुक्त मिष्ठान्न इत्यादि की तो कौन कहे, चाय तक की व्यवस्था न करने का यह तर्क दिया गया कि ट्रेड फेयर अथारिटी ने इस बाबत मना कर दिया था जबकि अन्य समारोहों में खुलकर चाय, जलपान इत्यादि का वितरण हुआ।
3. इस अवसर के चित्र व वीडियो लेखकों, प्रेस इत्यादि को इसलिए उपलब्ध नहीं कराए गए, ताकि इनके जरिए भी पैसा कमाया जा सके। इसकी पुष्टि बाद में मिले उस एसएमएस हुई जिसमें इस कार्यक्रम की चित्र और वीडियो की सीडी 600/- रुपये में बेचने की पेशकश की गई।
4. अधिकतर लेखकों से जबकि एकमुश्त राशि पुस्तक प्रकाशन के एवज में ली गई थी फिर भी उन्हें चित्रों और वीडियो की सीडी का न दिया जाना, 'धंधा कमाई' का वाकई एक बेहतरीन उदाहरण है।
5. दिल्ली और आसपास के के शहरों के अतिरिक्त मैनपुरी, जयपुर इत्यादि से भी हिन्दी चिट्ठाकार शामिल हुए परंतु उनके साथ भी इसी प्रकार का सर्वोत्तम व्यवहार किया गया।
6. विमोचन कार्यक्रम के बाहर अनेक अनुरोध के बाद भी पुस्तक विक्रय की मेज इत्यादि पर बेचने की व्यवस्था इसलिए नहीं की गई ताकि कुछ प्रतियां नि:शुल्क (प्रेस, मीडिया एवं मित्रों को) वितरित न करनी पड़ें।
7. प्रेस, मीडिया के लिए कोई प्रेस विज्ञप्ति इसलिए जारी नहीं गई क्योंकि उसमें जारी किए गए चित्र अखबारों में ही प्रकाशित हो जाते तो फिर कार्यक्रम के चित्र और वीडियो से कमाई करने का सपना बीच में ही टूट जाता।
8. मैं तो अपनी अधिक विस्तारपूर्वक प्रतिक्रिया बाद में दूंगा। अभी तो आपके विचारों का बेसब्री से इंतजार है। इस पर अरुण चन्द्र राय की प्रतिक्रिया मिलने की उम्मीद नहीं है लेकिन उन्होंने इस कार्य को अंजाम देकर 'उम्मीद से अधिक' ही दिया है। इसलिए उनकी टिप्पणी का भी स्वागत है।
टिप्पणियां क्रम से नीचे हैं :-
२७ को मैं वहाँ केवल जयदीप शेखर जी के कारण गया था ... ना आपके बुलावे पर ना अरुण जी के बुलावे पर ... इस से पहले भी काफी सारे कार्यक्रम हुए है पर मैं कभी भी कहीं नहीं गया क्यों कि मुझे इन सब का अंत विवाद में ही होता दिखा है हमेशा ... और अब भी यही हो रहा है !
आपने अपनी बात कहने से पहले एक पुरानी पोस्ट का जिक्र किया है ... माफ़ कीजियेगा पर मुझे जैसे अज्ञानी को इस पोस्ट पर दिए गया आपका हर तर्क अब केवल बदले की करवाई नज़र आ रहा है ... जो कम से कम आपको शोभा नहीं देती !
अगर आप अपनी बात बिना पुरानी बातों को उठाये हुए कहते तो बात कुछ और ही होती !
मेरे लिए २७ को सब से मिलना और पुस्तक के विमोचन पर जयदीप भाई के चहेरे की ख़ुशी सब से ज्यादा महत्वपूर्ण है इस लिए बाकी सब बातों को मैं नज़रंदाज़ कर भी दूं तो कोई गिला शिकवा नहीं !
मेरी बातें आपको बुरी लगी हो तो माफ़ कीजियेगा और अपना ख्याल रखें !
सादर