मंगलवार, जनवरी 07, 2014

आप के कुमार को नहीं था विश्वास

   मेरे मस्तिष्क में विचार आ रहा है, कि कुछ भी सार्वजानिक रूप से कहने से पहले थोड़ा सोच-विचार अवश्य किया करूँगा. वरना मेरी भी भविष्य में कुमार विश्वास जैसी दुर्गति हो सकती है. कवि सम्मलेन में अपने गिने-चुने मुक्तकों व उल-जलूल चुटकुलों के सहारे ख्याति पानेवाले कवि महोदय धर्म को भी अपने चुटकुलों का शिकार करने से बाज नहीं आते हैं. अब अपने हिंदू धर्म के देवी-देवताओं का मजाक उड़ाने तक सीमित रहते तो ठीक रहता, क्योंकि हम हिंदू इतने सहनशील हैं कि चाहे जो भी हमारी धार्मिक भावनाओं को आहत करता रहे हम इस डर से शांत रहते हैं कि कहीं हमारे क्रोधित होने पर तथाकथित सेकुलर लोग हमें सांप्रदायिकता का मैडल न भेंट कर दे. अब चूँकि कवि कुमार ने  एक ऐसे धर्म पर कुछ साल पहले मूर्खता भरी टिप्पणी की थी, जो ईंट का जवाब चट्टान से देने में सिद्धहस्त है, तो उन्हें अपनी करनी का भुगतान तो करना ही पड़ेगा. "आप" के कुमार को विश्वास नहीं हो रहा होगा कि अपने चुटकुलों के कारण उनके सामने जीवन में कभी ऐसी कठिन परिस्तिथि भी आ सकती है. वैसे मैं किसी भी व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाए जाने के विरुद्ध हूँ. आपके क्या विचार हैं इस बारे में?

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